भावना एक गृहणी है, 40 की उम्र की। वह अपने पति के साथ एक फ्लैट में रहती है। उम्र के इस पड़ाव में भी वह निसंतान है और जीवन का अकेलापन उसे परेशान कर रहा है।
उसके पति उमेश एक बैंक में काम करते हैं। कुछ दिन पहले ही उनका ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया। अब वो शनिवार को आते और रविवार की शाम को फिर चले जाते। भावना के जीवन में और भी अकेलापन आ गया।
उमेश को कॉलेज के दिनों से ही सिगरेट पीने की लत थी। धीरे धीरे ये लत इतनी बढ़ गई कि वह हर दिन 10 से अधिक सिगरेट पीने लगा। इसका असर उसके पौरुष पर भी पड़ने लगा और उसके शुक्राणुओं की संख्या कम हो गई।
वहीं दूसरी ओर भावना को भी गर्भ धारण करने में दिक्कत हो रही थी। उसके गर्भाशय में एक गांठ थी जिसकी वजह से गर्भ नहीं ठहरता था।
शादी के 10 साल बीत चुके थे लेकिन अभी भी भावना की गोद नहीं भरी थी। एक बार उसकी सहेली नीता ने उसे सलाह दी कि उसे किसी अच्छे डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। भावना ने कहा - मैं कई डॉक्टरों से मिल चुकी हूं लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। नीता - मुझे एक डॉक्टर के बारे में पता चला है, डॉक्टर रजिया, एक बार तुम उनसे भी सलाह ले सकती हो। भावना - ठीक है, उनका नंबर दे दो।
नीता ने नंबर दिया और भावना ने अपॉइंटमेंट बुक कर लिया। जांच के बाद रजिया ने कहा - आपकी रिपोर्ट्स आ गई हैं, आपको संतान हो सकती है, बस आपको काफी सावधानी बरतनी होगी, 30% चांस हैं कि आपको दोबारा गर्भधारण हो जाए।
भावना ने कहा - डॉक्टर, असल में मेरे पति बहुत सिगरेट पीते हैं और उन्हें इसकी वजह से काफी दिक्कतें भी झेलनी पड़ी, इसका असर उनके पौरुष पर भी पड़ा है। दूसरी ओर मेरी बच्चेदानी में भी गांठ है, लगता है मैं जिंदगी भर मां नहीं बन पाऊंगी।
रजिया के मुंह पर एक कुटिल मुस्कान आ गई और उसने कहा - बेसब्र न हों, अगर अल्लाह ने चाहा तो आपकी गोद जरूर भरेगी। जहां दवा नहीं काम करती वहां दुआ काम करती है।
ये कहकर उसने भावना को एक कार्ड दिया। वह एक एनजीओ का कार्ड था, एनजीओ का नाम था - बरकत फाउंडेशन। भावना ने उसपर दर्ज नंबर पर कॉल किया। उधर से एक महिला की आवाज आई, जिसका नाम आयशा था।
आयशा - सलाम, बरकत फाउंडेशन आपका खैर मुख्दम करता है। कहिए क्या मदद कर सकती हूं मैं आपकी? भावना डरते हुए बोली - मुझे आपका नंबर डॉ रजिया से मिला है , मुझे दुआ की अर्जी लगवानी है।
आयशा ने कहा - बिलकुल, हम आपके लिए दुआ करवा देंगे, पर आपको खुद यहां आकर अपने लिए दुआ करवानी होगी,आप कबतक यहां आ सकती हैं?
भावना ने कहा - 2 दिन बाद, मैं आपसे मुलाकात कर लूंगी। आयशा - ठीक है, मैं आपका इंतजार करूंगी।
दो दिन बाद भावना, आयशा के दिए पते पर पहुंची। वह एक बड़ी बिल्डिंग थी जहां कई जरूरतमंद लोगों की लाइन लगी हुई थी।
आयशा ने भावना को अंदर बुलाया और कहा - आपके लिए मैने बात कर ली है,एक मौलवी साहब हैं जो दुआ करते हैं, उन्होंने आपको मिलने के लिए बुलाया है।
भावना डरते हुए बोली - कहां मिलेंगे वो? आयशा - वो अपने दरबार में मिलेंगे,आपको उनसे मिलने जाना होगा। भावना - ठीक है, मैं मिल लूंगी, पर आप भी साथ रहिएगा। आयशा - जरूर, लेकिन उनका घर मुस्लिम मोहल्ले में है और आपका ऐसे वहां जाना ठीक नहीं होगा,आप बुर्का पहन लीजिए, इससे किसी का ध्यान आपकी ओर नहीं जाएगा।
भावना को ये सब अजीब लग रहा था लेकिन फिर भी उसने आयशा की बात मानी और साड़ी के ऊपर ही बुर्का पहन लिया और उसके साथ चल दी।
दोनों ने ऑटो लिया और फिर मौलवी साहब के पास चल दी। मोहल्ले में पहुंच कर उन्होंने कुछ अगरबत्ती, फूल और मिठाई खरीदी और फिर मजार की ओर चल दी।
दोपहर का समय था,वहां उस समय भीड़ नहीं थी। आयशा भावना के साथ मजार में गई। वहां एक 55 साल का आदमी बैठा था, जो कि वहां का मौलवी था।
भावना ने उसे नमस्ते कहा तो उसने सिर हिलाकर अभिवादन किया। उसकी नजरें भावना के बुर्के में कैद बदन को निहार रही थीं। भावना उसके आगे हाथ जोड़े बैठी थी और निशब्द थी।
आगे क्या हो सकता है? आप चाहें तो चर्चा कर सकते हैं।
Open to discussion in private.
